बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
उत्तर -
मानव विकास के अध्ययन का महत्त्व
(Importance of Study of Human Development)
बालक देश के अमूल्य निधि हैं। समाज व राष्ट्र के आधारशिला हैं। कल का भारत कैसा होगा, यह मुख्यतः वहाँ के नागरिकों पर निर्भर करता है। बालक ही समय के साथ पल - बढ़कर, पढ़-लिखकर, सुसभ्य, सुसंस्कृत, योग्य, कुशल व कर्मठ नागरिक बनते हैं, तथा देश का उत्थान करते हैं। जिस देश के बालक अस्वस्थ, निर्बल कमजोर व अशिक्षित होंगे, निश्चित ही वह देश गरीब, कमजोर व निर्बल होगा। इसलिए बाल विकास का अध्ययन किया जाना जरूरी है।
बालक के जीवन का प्रारंभिक वर्ष काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय बालक जो कुछ भी सीखता है, वह जीवन पर्यन्त बना रहता है तथा उसकी अमिट छाप उसके व्यक्तित्व में दिखाई देती है। वर्तमान में, बाल विकास का अध्ययन कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। बाल विकास पर हुए अध्ययनों से माता-पिता एवं शिक्षकों को यह पता चल जाता है कि बालक में कौन-कौन-सी प्रतिभाएँ विद्यमान हैं तथा उन्हें किस प्रकार से निखारा जा सकता है। माता-पिता को अपने बालकों को समझने में सहायता मिली है जिससे बालकों का सर्वांगीण विकास एवं कल्याण किया जा सकता है। इतना ही नहीं शिक्षकों को भी बालकों की रुचियों को जानने का अवसर मिला है बुद्धि लब्धि के आधार पर बालकों का वर्गीकरण कर उनकी प्रतिभा का समुचित विकास किया जा सकता है। बाल विकास के अध्ययनों से समाज, राष्ट्र व सम्पूर्ण विश्व भी लाभान्वित हुआ है। अतः बाल विकास के अध्ययन के महत्व को शब्दों में बाँध पाना अत्यंत ही कठिन है, फिर भी इसके महत्व को निम्न बिन्दुओं में समेटने का प्रयास किया गया है-
1. बालकों के स्वभाव को समझने में सहायक (Helpful in Understanding the Nature of Children) - बालकों के स्वभाव, व्यवहार, रुचियों, अभिवृत्तियों, आदतों आदि का अध्ययन बाल विकास के अन्तर्गत किया जाता है जिससे यह पता चल जाता है कि बालक का स्वभाव किस प्रकार का है? उसमें कौन-कौन-सी अच्छी-बुरी आदतें विद्यमान हैं। उसे किन कार्यों को करने के प्रति रुचि है। क्रिस कार्य को वह पूरे मनोयोग से कर सकता है? उसकी बुद्धि लब्धि कितनी हैं तथा उसमें कौन-कौन सी प्रतिभाएँ छिपी हुई है। इन सभी का ज्ञान हो जाने से बालक के सर्वांगीण विकास में सहायता मिलती है। बालक को पढ़ाने लिखाने के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने में सफलता मिलती है। अतः माता-पिता, शिक्षकों, समाज-सुधारकों, बाल-निदेशनकर्ताओं आदि के लिए इस विषय का ज्ञान होना जरूरी है।
2. बालकों के नैतिक व चारित्रिक निर्माण में सहायक (Helpful in Moral and Character Formation in Children) - उत्तम चरित्र वाले बालक ही माता-पिता, समाज, परिवार एवं देश का भला कर सकते हैं। वे ही माता-पिता का नाम रोशन कर सकते हैं। अनैतिक एवं चरित्रहीन बालकों से देश की उन्नति की अपेक्षा नहीं दी जा सकती। हाँ! वे देश को विनाश के गर्त में अवश्य ढकेल सकते हैं। अतः बाल विकास के अध्ययन से बालकों के चरित्र निर्माण में सहायता मिलती है। समुचित निर्देशन द्वारा बालकों में सुन्दर चरित्र का निर्माण किया जा सकता है।
3. अनुशासन के विकास में सहायक (Helpful in the Development of Discipline) अनुशासित बालकों का भविष्य सुंदर बनता है। वे बालक जो बचपन से ही अनुशासित रहते हैं, जीवन में काफी प्रगति करते हैं। सफलता उनके चरण चूमती है। उनका भविष्य सुखद बनता है। वे समाज एवं देश के लिए मिशाल होते हैं जिनका उदाहरण दिया जाता है। वे आने वाले पीढ़ियों के लिए आदर्श होते हैं जिनका अनुकरण भावी पीढ़ी करते हैं। अतः बाल विकास के अध्ययन से बालकों में अनुशासन का विकास किया जाता है।
4. वैयक्तिक भिन्नताओं की जानकारी प्राप्त करने में उपयोगी (Useful in Getting Knowledge About Individual Differences) - इस संसार में, किसी भी दो बालक या व्यक्ति में इतनी समानता नहीं होती है कि उन्हें पहचाना ही न जा सके। उनमें अवश्य ही कुछ-न-कुछ विभिन्नता देखने को मिलती ही है, यह विभिन्नता वंशानुक्रम कारणों, आर्थिक एवं पारिवारिक स्थिति में भिन्नता, पालन-पोषण के ढंग में अंतर, लिंग, जाति विभेद (caste differences), बुद्धि लब्धि (IQ), पारिवारिक पृष्ठभूमि, शारीरिक व गामक विकास आदि कारणों से होती है। कुछ बालक कुशाग्र बुद्धि के होते हैं तो कुछ सामान्य बुद्धि के और कुछ मंद बुद्धि के। किसी बालक को पढ़ने-लिखने में अधिक रुचि रहती है तो किसी को खेलने-कूदने में, किसी को सिलाई-कढ़ाई व पेंटिंग में। किसी बालक की रुचि कृषि कार्य में रहती है तो किसी की व्यापार में। अतः इन विभिन्नताओं के आधार पर उन्हें अलग से प्रशिक्षण देकर कुशल एवं योग्य बनाया जा सकता है। इस प्रकार मानव विकास बालकों के शिक्षण, प्रशिक्षण एवं निर्देशन में उपयोगी है।
5. बालकों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने में सहायक (Helpful in Developing Scientific Attitudes Towards Children) - 16वीं शताब्दी से पूर्व बालकों के लालन-पालन एवं शिक्षा-दीक्षा पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। तब माता-पिता एवं अभिभावकों का मुख्य उद्देश्य यही रहता था कि बालक समाज एवं परिवार के प्रत्याशाओं के अनुरूप रहे। इसलिए उनकी रुचियों एवं शिक्षण-प्रशिक्षण पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। उसे प्रौढ़ का ही लघुरूप (Miniature Adult) माना जाता था। अतः उनके खान-पान, वस्त्र परिधान, मनोरंजन आदि में बहुत अंतर नहीं रहता था। बालक वही खाना खाते थे जो घर में वयस्कों के लिए बनाया जाता था। परन्तु 19वीं सदी के मध्य तक लोग यह समझने लगे कि बालक प्रौढ़ का लघुरूप नहीं है। इनकी रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ, कार्य करने का ढंग आदि प्रौढ़ों से काफी भिन्न होते हैं। इनका मन-मस्तिष्क प्रौढ़ों से काफी भिन्न होता है। अतः बालक के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा। बाल विकास के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों, दार्शनिकों व मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न मतों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया तथा बताया कि बालक का प्रारंभिक जीवन काफी महत्वपूर्ण होता है। यदि बालक बाल्यकाल में कटु अनुभव करता है तो उसका प्रभाव आजीवन, उसके जीवन पर पड़ता है। इसके विपरीत जिन बालकों का बाल्यकाल अच्छा बितता है। जिनका लालन-पालन समुचित ढंग से किया जाता है। जिनकी शिक्षण-प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की जाती है वे आगे चलकर योग्य एवं कर्मठ नागरिक बनते हैं।
6. मानसिक दुर्बलता के शीघ्र उपचार में सहायक (Helpful in Rapid cure of Mental Weaknesses) - कई बालक जन्म से ही दुर्बल बुद्धि के होते हैं जिनका पता स्कूल जाने पर ही लग पाता है। दुर्बल बुद्धि के बालक सामान्य बालकों की तुलना में बहुत ही कम पढ़-लिख व सीख पाते हैं। इन बालकों को मंद बुद्धि के बालकों के अन्तर्गत चिन्हित करके उनके शिक्षण-प्रशिक्षण की अलग से व्यवस्था की जाती है। कुशल एवं योग्य शिक्षक के निर्देशन में उन्हें पढ़ाया-लिखाया जाता है तथा धनोपार्जन योग्य बनाया जाता है ताकि उनका भविष्य सुखद हो सके।
अतः स्पष्ट है कि बाल विकास के अन्तर्गत मानसिक दुर्बलताओं से युक्त बालक, अपराधी बालक, समस्यात्मक बालक आदि का अध्ययन किया जाता है तथा उन्हें सुधारने का हर संभव प्रयास किया जाता है।
7. बालकों के विकास को समझने में उपयोगी (Useful in Understanding the Development of Children)- प्रत्येक बालक का विकास कुछ विशेष सिद्धान्तों व नियमों पर आधारित होता है। विकास प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक बालक किसी विशिष्ट गुण को प्रदर्शित करता है जो उसके पूर्व या बाद की अवस्थाओं में होते ही नहीं है अथवा होते भी है, तो बहुत ही न्यून मात्रा में। इन विशिष्ट गुणों को पहचानकर बालक के सम्बन्ध में यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि बालक आगे चलकर क्या बनेगा। “पूत के पांव पालने में ही नजर आते हैं।" यह कहावत यहाँ चरितार्थ होते नजर आती है। 2-3 वर्ष का बालक छोटे-छोटे वाक्यों को बोलना सीख जाता है। वह अंग्रेजी - हिन्दी के शब्दों को याद कर उनका अर्थ बता देता है परन्तु यदि 2-3 वर्ष का बालक ठीक प्रकार से 2-3 शब्दों का छोटे-छोटे वाक्य नहीं बोल पाता है तो उसमें भाषा विकास मंद गति से हो रहा है। जब माता-पिता एवं शिक्षक को इस बात का पता चल जाता है कि बालक में भाषा विकास सामान्य गति से नहीं हो रहा है, तब इस समस्या के समाधान हेतु उपाय किये जा सकते हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मानव विकास के अध्ययन से माता-पिता एवं शिक्षकों को विकासात्मक क्रियाओं के आधार पर बालकों के विकास को समझने, समस्या समाधान करने व उचित निर्देशन में सहायता मिलती है। गेसेले ( Gessel) ने 1950 में विकासात्मक कार्यों (Developmental Tasks) की सूची बनायी है। इस सूची से यह ज्ञात किया जा सकता है कि किन-किन आयु स्तरों पर बालक में कौन-कौन से विकासात्मक क्रियाओं का उद्भव होता है।
8. बाल निर्देशन में उपयोगी (Useful in Child Guidance) - बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए सही दिशा निर्देश दिया जाना जरूरी है। सही निर्देशन के अभाव में बालक अपनी राह से भटक जाते हैं तथा गलत रहा चुन लेते हैं। वे गलत एवं आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के चंगुल में फंसकर गलत कार्य करने लगते हैं। फलतः उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है तथा जीवन नरकमय। इसलिए माता-पिता, शिक्षकों, समाज-सुधारकों एवं सरकार का परम कर्तव्य है कि वे बालकों को सही दिशा निर्देशन दें। उचित निर्देशन से बालकों को अपनी योग्यता को निखारने में सहायता मिलती है तथा उनकी रुचियों का अधिकतम विकास होता है।
निर्देशन चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, निदेशक को बाल विकास का ज्ञान होना चाहिए। बाल विकास के नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार पर बालक को शैक्षणिक, व्यावसायिक, व्यवहारिक, व्यापारिक निर्देशन देकर उनके भविष्य को सुन्दर बनाया जा सकता है।
अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि प्रतिभाशाली एवं कुशाग्र बुद्धि वाला बालक भी उचित मार्गदर्शन के अभाव में अपराधिक प्रवृति के हो जाते हैं जबकि सामान्य बुद्धि के बालक भी उचित अवसर पाकर तथा सही दिशा निर्देशन में अधिक अच्छा कार्य करते हैं व जीवन में प्रगति करते हैं।
9. बालकों के शिक्षण-प्रशिक्षण में उपयोगी (Useful in Teaching and Training Children) - बाल अध्ययन से इस बात का पता आसानी से चल जाता है कि किस अवस्था में बालक कितनी मानसिक योग्यता रखता है? उसकी बुद्धि लब्धि कितनी है? बालकों की मानसिक, बौद्धिक व संज्ञानात्मक विकास को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम तैयार किये जाते हैं। परीक्षा कब और कितने समय में होने चाहिए, इस बात पर भी बल दिया जाता है। स्कूलों में समय सारणी (time table) बनाते समय भी बालक की आयु, मानसिक योग्यता एवं बौद्धिक क्षमता को ध्यान में रखा जाता है।
10. सुखी पारिवारिक जीवन बिताने में सहायक (Useful in Making Happy Family Life) - सुखी पारिवारिक जीवन बिताने के गूढ़ रहस्यों का अध्ययन भी मानव विकास के अन्तर्गत किया जाता है। पति-पत्नी के आपसी सम्बन्ध मधुर हो, पत्नी को ससुराल पक्ष के साथ किस तरह से समायोजन करना चाहिए आदि बातों की जानकारी बाल विकास के अन्तर्गत की जाती है। साथ ही बालक के लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा की समुचित जानकारी भी दी जाती है। इस प्रकार यदि पत्नी पढ़ी-लिखी, सुयोग्य, सुसभ्य एवं सुसंस्कृत है तथा वह अपने बालकों को अच्छे संस्कार प्रदान करती है। उन्हें आज्ञाकारी, परोपकारी, सहिष्णु, सहयोगी बनाती है तो निश्चित ही पारिवारिक जीवन सुखमय बीतता है। अतः छात्र छात्राओं को मानव विकास का अध्ययन करना चाहिए।
11. बालकों के व्यक्तित्व विकास में सहायक (Helpful in Personality Development of Children) – मानव विकास के अध्ययन से बालकों के व्यक्तित्व विकास में सहायता मिलती है। माता-पिता एवं शिक्षकों को यह पता चल जाता है कि बालकों के सर्वांगीण विकास में कौन-कौन से कारक अधिक जिम्मेदार होते हैं। कौन से कारक व्यक्तित्व विकास में बाधक सिद्ध होते हैं। इन बातों की समुचित जानकारी मिल जाने से माता-पिता व शिक्षक सचेत हो जाते हैं तथा उसी के अनुरूप व्यवहार करते हैं। उचित वातावरण प्रदान कर बालकों की क्षमताओं का विकास किया जाता है। जैसे—जब माता-पिता को यह पता चल जाता है कि बालक कुशाग्र बुद्धि का है तो उसकी शिक्षक व्यवस्था सामान्य बालकों के साथ नहीं की जाती है और अलग शिक्षण व्यवस्था करके उसकी क्षमताओं का पूर्णतः विकास किया जाता है। इस प्रकार माता-पिता व शिक्षक बालक की रुचियों व क्षमताओं को ध्यान में रखकर उचित दिशा निर्देश देते हैं तथा अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।
12. बालकों के व्यवहार नियंत्रण में सहायक (Helpful in Behaviour Control of Children) —- बालक चंचल व उत्साही होते हैं। उन्हें भले-बुरे का जरा सा भी ज्ञान नहीं होता। माता-पिता, अभिभावक व शिक्षक ही उन्हें भला-बुरा का ज्ञान कराते हैं। यदि बालक कोई गलत कार्य करता है तो उन्हें टोकते हैं और सही कार्य का ज्ञान कराते हैं। इस प्रकार उनमें अच्छे गुणों का विकास कर उन्हें योग्य नागरिक बनाते हैं। किसी भी बालक को समाज एवं देश तभी स्वीकारता है जब उसमें अच्छे गुण होते हैं। उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास उत्तम ढंग से हुआ रहता है। उसका व्यवहार सहयोगात्मक होता है।
मानव विकास के अध्ययन से माता-पिता व शिक्षकों को अपने बालकों के व्यवहारों को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। वे बालकों में गंदी बातों एवं बुरी आदतों का विकास नहीं होने देते हैं तथा चरित्रवान नागरिक बनाते हैं। यदि बालक में चोरी करने, झूठ बोलने, गाली बकने, मारपीट करने, जिद करने, अंगूठा चूसने जैसी बुरी आदतें हैं, तो इनके निराकरण हेतु हर संभव उपाय किये जाते हैं।
13. न्याय के क्षेत्र में उपयोगी (Useful in the Field of Justice) मानव विकास का अध्ययन न्याय के क्षेत्र में भी काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। पहले बालक जब भी कोई अपराध करता था, चोरी-डकैती अथवा चैन स्नेचिंग में लिप्त रहता था, तो पकड़े जाने पर उसे कठोर कारावास की सजा दी जाती थी। उसे बड़े-बड़े गुंडे व अपराधियों के बीच ही जेल में रखा जाता था। परिणामतः जब बालक जेल की सजा काटकर बाहर निकलता था तब तक वह खुंखार व वांछित अपराधी बन जाता था। इसलिए अब यह धारणा बदल गई है कि बालकों को दंड देकर नहीं, अपितु सुधारात्मक उपायों से ही सुधारा जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार ने प्रत्येक राज्य में बाल सुधार गृहों की स्थापना की है। इन गृहों में अपराधी बालकों व किशोरों को रखा जाता है तथा उन्हें सुधारनें के हर संभव प्रयास किये जाते हैं।
14. बालक के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाने में सहायक (Helpful in the Predicition of Child) - बालक की लम्बाई, चौड़ाई, भार बुद्धि, मानसिक योग्यता, बौद्धिक क्षमता, बोलने - चालने का ढंग आदि को देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि बालक का विकास आयु के विभिन्न स्तरों पर तीव्र गति से होता है तो कहा जा सकता है कि बालक कुशाग्र बुद्धि का होगा। यदि बालक का विकास सामान्य ढंग से होता है तो कहा जा सकता है कि बालक सामान्य बुद्धि का होगा, परन्तु यदि बालक का विकास अत्यंत ही मंद गति से होता है तो यह पूर्वानुमान लगाया जाता है कि बालक मंद बुद्धि का होगा। परन्तु यदि बालक मंद बुद्धि का होगा "पूत के पांव पालने में ही नजर आते हैं।" यहाँ यह कहावत शत-प्रतिशत चरितार्थ होते नजर आती है।
15. स्वस्थ वातावरण के निर्माण में उपयोगी (Useful in Making Healthy Environment) - स्वस्थ वातावरण के निर्माण में भी मानव विकास का महत्व बढ़ा है क्योंकि बालकों के सर्वांगीण विकास में स्वस्थ वातावरण का होना आवश्यक है। दूषित, कलुषित, गंदे वातावरण में बालक का विकास होना तो दूर उनका जीना भी मुश्किल हो जाता है। जिस घर / परिवार का वातावरण दूषित, कलुषित होता है वहाँ बालकों का सुन्दर ढंग से विकास नहीं हो पाता है। बालक हीन भावना एवं कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं। कई बालक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं तथा गांजा, भांग, बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि का सेवन करने लग जाते हैं। इसलिए वर्तमान में यह अनुभव किया जाने लगा है कि बालक के स्वस्थ व सर्वांगीण विकास के लिए स्वस्थ वातावरण का होना अत्यंत आवश्यक है।
16. राष्ट्र की उन्नति में सहायक (Helpful in Progress of Nation) - बालक राष्ट्र के अमूल्य निधि हैं। इन्हीं पर राष्ट्र का भविष्य टिका है। यदि बालक चरित्रवान, आज्ञापालक, कर्मठ, शिक्षित, योग्य कुशल एवं ईमानदार हैं और अपने कार्य को पूरी ईमानदारी व तत्परता से करते हैं तो निश्चित ही राष्ट्र प्रगति करता है। मानव विकास के अन्तर्गत बालकों की सृजनशीलता, कल्पनाशक्ति, भाषा शक्ति, बौद्धिक विकास, शारीरिक व मानसिक विकास, व्यक्तित्व विकास आदि पर पूरा ध्यान दिया जाता है जिससे उनका सर्वांगीण विकास होता है। सुन्दर गुणों से विभूषित व कर्तव्यनिष्ठ बालक ही देश को प्रगति के शिखर पर ले जाते हैं।
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- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
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- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
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- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
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- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
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- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?